जानते हो?
तुम मेरे घर हो।
माना तुम में मेरा पिंक कमरा नहीं है
पर पिंक कमरा तुम्हारे साफ़ दिल जितना सुकून भी नहीं देता।
तुम में मेरी अठखेलियों के लिए बाग़ीचा नहीं है
पर मेरी अठखेलियाँ हैं ही तुमसे।
स्वादिष्ट पकवान बनाने का रसोवड़ा नहीं है
पर तुम्हारी मीठी बातों से पेटभर जाता है।
सुनो,
तुम सिर्फ़ मेरे घर नहीं हो
मेरे घर के आँगन में बने मंदिर भी हो
तुम मुझे और मेरे ख़यालों को पवित्र रखते हो।
सुना है,
माँ के बिना घर, घर नहीं होता
लेकिन लाड़ तो तुम माँ सा ही करते हो।
कहते हैं,
घर हमारी रक्षा करता है
लेकिन तुम दूर रह कर भी मेरा ख़याल रखते हो।
मैं विदाई जैसे रीति रिवाज मानती नहीं
पर कभी हुई, तो चाहूँगी, तुम्हारे द्वारा हो मेरी विदाई।
हाँ, आँखें नम ज़रूर होंगी मेरी
लेकिन तुम वो घर हो जो मेरे पास आ सकता है
और मैं उसके पास जा सकती हूँ।
शायद इसलिए ज़्यादा दुख नहीं होगा।
जानते हो?
तुम मेरे घर हो।
तुम कुछ-कुछ मेरे प्रिय मित्र कृष्ण की तरह हो।
तुम मेरे घर हो।
माना तुम में मेरा पिंक कमरा नहीं है
पर पिंक कमरा तुम्हारे साफ़ दिल जितना सुकून भी नहीं देता।
तुम में मेरी अठखेलियों के लिए बाग़ीचा नहीं है
पर मेरी अठखेलियाँ हैं ही तुमसे।
स्वादिष्ट पकवान बनाने का रसोवड़ा नहीं है
पर तुम्हारी मीठी बातों से पेटभर जाता है।
सुनो,
तुम सिर्फ़ मेरे घर नहीं हो
मेरे घर के आँगन में बने मंदिर भी हो
तुम मुझे और मेरे ख़यालों को पवित्र रखते हो।
सुना है,
माँ के बिना घर, घर नहीं होता
लेकिन लाड़ तो तुम माँ सा ही करते हो।
कहते हैं,
घर हमारी रक्षा करता है
लेकिन तुम दूर रह कर भी मेरा ख़याल रखते हो।
मैं विदाई जैसे रीति रिवाज मानती नहीं
पर कभी हुई, तो चाहूँगी, तुम्हारे द्वारा हो मेरी विदाई।
हाँ, आँखें नम ज़रूर होंगी मेरी
लेकिन तुम वो घर हो जो मेरे पास आ सकता है
और मैं उसके पास जा सकती हूँ।
शायद इसलिए ज़्यादा दुख नहीं होगा।
जानते हो?
तुम मेरे घर हो।
तुम कुछ-कुछ मेरे प्रिय मित्र कृष्ण की तरह हो।
© Priyanka Bajaj
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